पृथ्वीराज चौहान -> (संन 1178- 1192 ) चौहान वंश के हिंदू क्षत्रीय राजपूत राजा थे जो उत्तर भारत में १२ वी सदी के उतरार्ध में अजमेर (अजयमेरु ) और दिल्ली पर राज्य करते थे | वे भारतेश्वर, पृथ्वीराजतृतीय, राजपिथौरा, व हिन्दूसम्राट इत्यादि नाम से प्रसिद्ध है | भारत के अंतिम हिन्दू राजा के रूप प्रसिद्ध पृथ्वीराज 1235 विक्रम सवंत में पंद्रह वर्ष (15) की आयु में राज्य सिहासन पर आरूढ़ हुए | पृथ्वीराज चौहान की तेरह रानिया थी |
चित्र -सम्राट पृथ्वीराज चौहान
उन में से संयोगिता सबसे करीब मानी जाती थी | पृथ्वीराज चौहान ने दिग्विजय अभियान में 1177 वर्ष में भड़ानक देशीय को, 1182 वर्ष में जेजाकभक्ति शासक को और ११८३ वर्ष में चालुक्य वंशीय शासक को पराजित किया | इन वर्षो में भारत के उतरभाग में गोरी नामक एक मुग़ल योद्धा अपने शासन और धर्म के विस्तार की कामना से अपने जनपदों छल से या बल से पराजित कर रहा था उसके शासन विस्तार की ओर धर्म विस्तार के फलस्वरूप ११७५ से पृथ्वीराज चौहान का मोहम्मद गोरी के साथ युद्ध व षड्यंत्र प्रारंभ हुआ ! उसके पश्चात अनेक लघु एवं बड़े युद्ध पृथ्वीराज चौहान व मुगल मोहम्मद गोरी के मध्य हुए! विभिन्न ग्रंथो में जो युद्ध सड़ख़्या मिलती है वे सड़ख़्या 7, 17 , 21 , और 28 है ! सभी युद्धों में पृथ्वीराज चौहान ने गोरी को बन्दी बनाया और उसको छोड़ दिया ! परन्तु अंतिम बार तरायन के द्वित्य युद्ध 1192 में मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को रात के अंधेरे में छल कपट से बन्दी बना लिया, उस के गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को कुछ दिनों तक इस्लाम धर्म को स्वीकार करवाने का प्रयास करता रहा ! उस प्रयासों में पृथ्वीराज चौहान को शारीरिक पीड़ाएं दी गई ! शारीरिक यातना देने के समय गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को अन्धा कर दिया ! अन्ध पृथ्वीराज चौहान ने अपने मित्र चन्दरबरदाई चारण के साथ मिलकर गोरी का वध करने की योजना बनाई , योजना के तहत हिन्दू ह्रद्य सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने शब्दभेदी विया से तीर छोड़कर मोहम्मद गोरी का वध कर दिया !
एक एव सुहद्धर्मो निधनेडप्यनुयति य: !शरिरेण समं नाशं सर्वम अन्यद्धि गच्छति ||
मनुस्मृति:
अर्थात धर्म ही ऐसा मित्र है, जो मरणोत्तर भी साथ चलता है | अन्य सभी वस्तुएँ शरीर के साथ ही नष्ट हो जाती है | इतिहास विद पृथ्वीराज चौहान ने इन श्रलोक का अन्तिम समय पर्यन्त आचरण किया !
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