महाराना प्रताप के जीवन के अंतीम पल !!
ऊनके मुख से निकले हुये अंतीम शब्द क्या थे ?
अश्रूभीनी आंखो से मात्रृभुमी और अपनी प्रजा से अंतीम वीदाय
विर महाराना प्रताप 25 वर्षो से निरंतर युद्ध करते करते उनका शरीर जर्जर हो चूका था उन्हें आराम की सख्त जरुरत थी. परन्तु राणा प्रताप ने अपने सुख चैन और आराम को कभी भी महत्त्व नहीं दिया.
उनकी एकमात्र चिंता बस यही थी की देश के राजपूताने में एक ऐसा जूनून पैदा हो की वे एक होना सीखे और बहरी ताकतों के हाथों में न खेलकर अपनी ताकतों को पहचाने और अपने देश में अपने संयुक्त साम्राज्य की स्थापना के लिए कुछ करें.
महाराणा प्रताप के अंतिम पल थे तब उनके मन में एक ही चिंता घर कर गयी थी की उनके बाद मातृभूमि के लिए लड़ने वाले राजपूतों की परम्परा समाप्त हो जाएगी. मेवाड़ का भविष्य भी उनको उज्जवल नहीं दिख रहा था. उन्हें भय था की उनके बाद अमर सिंह मुगलों का दयित्व स्वीकार कर लेगा.
जिस प्रतिष्ठा के लिए वे आजीवन हर तरह के कष्ट सहते हुए शत्रुओं से जूझते रहे, उनकी मृत्यु के बाद वह धुल में मिल जाएगी. राणा प्रताप से मिलने प्रतिदिन अनेक लोग आते थे. राणा बीमार है और मृत्यु की शय्या पर है ऐसी खबर दूर दूर तक फ़ैल गयी थी.
अनेक राजपूत राजा उनका हाल चाल जानने और उनके दर्शन के लिए आने लगे थे. राजपूत ही नहीं अनेक बहादुर मुसलमान और मुस्लिम सरदार भी राणा के दर्शन करने में अपना अहोभाग्य समझते थे.
अब तो अंतिम दिन निकट आ पहुंचा था. महाराणा की दशा बिगड़ गयी थी. उन्होंने अपने विश्वस्त साथियों गोविन्दसिंह,पृथ्वीराज, शक्तिसिंह अमरसिंह आदि को बुलाया और कहने लगे-“अब मुझे केवल एक बात बताओ मेरे बाद इस मातृभूमि की लड़ाई कौन लडेगा आप सब थक चुके है और अमरसिंह अभी छोटे है.
“आप शांत रहिये भैया” शक्तिसिंह ने आगे बढ़कर कहा-“जब तक हम चितौड़ का किला जीत नहीं लेते है, मुगलों से कोई समझौता नहीं करेंगे. हम मुगलों के आगे कभी नहीं झुकेंगे, आपके द्वारा स्थापित वीरता की परंपरा को धक्का नहीं लगने देंगे, चाहे हमारे प्राण ही क्यों ना चले जाए.”
बाबा रावत को साक्षी मानकर सभी राजपूतों ने प्रतिज्ञा की. राणा आश्वस्त हो गए और बोले-“मुझे आप लोगो पर पूरा भरोसा है अब मैं चैन से मर सकूँगा”.कहते हुए महाराणा ने शून्य में देखा और फिर गर्दन झुकाकर कहने लगे –“मेरा अंत समय निकट आ गया है.
प्राण के निकलते समय मैं चित्तौडगढ के दर्शन करना चाहूँगा आप सब मुझे ऐसी जगह लिटा दीजिये जहाँ से मैं चितौड़गढ़ का किला स्पष्ट रूप से देख सकूँ. चितौड़गढ़ का किला जब राणा जी को दिखने लगा तो वो उठ बैठे और बोले –“हे मुग़ल पददलित चितौडगढ़ मैं तुझे अपने जीवन में प्राप्त ना कर सका.
अकबर ने उसपर अन्याय से कब्ज़ा कर रखा है, मैं तुझे जीते बिना ही जा रहा हूँ, परन्तु विश्वास रख मेवाड़ की युवा पीढ़ी तुझे शीघ्र ही मुक्त करा लेगी. मैंने प्राण पण से तेरे उद्धार की कोशिश की थी मगर……”कहते कहते महाराणा का गला रुंध गया, दृष्टी किले के बुर्ज पर ही ठहर गयी थी. तभी वैद्य ने उनकी नाड़ी देखी और बोले- “महाराणा की इहलीला समाप्त हो गयी”.
यह शब्द सुनते ही अमरसिंह, गोविन्दसिंह, शक्तिसिंह आदि राणा के गले से लिपटकर फूट फूट कर रोने लगे. मेवाड़ के जाज्वल्यमान सूर्य का अन्त हो गया. पूरा मेवाड़ शोक में डूब गया
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