चित्र - महाराणा कुम्भा
महाराणा कुम्भा राजस्थान के शूरवीरो , योद्धाओ व राजाओ में सर्वश्रेष थे ! मेवाड़ के आसपास जो उद्धत राज्य थे, उन पर उन्होंने अपना आधिपत्य स्थापित किया ! 35 वर्ष की अल्पायु में उनके द्रारा बनवाए गए बत्तीस दुर्गो में चितोड़गढ़, कुम्भलगढ़, अचलगढ़ जहा सशक्त स्थापत्य में शीर्षस्थ हे, वही इन पर्वत दुर्ग में चमत्कृत करने वाले देवालय भी है | उनकी विजयो का गुणगाण करता विष्वविख्यात विजय स्तम्भ भारत देश की एक अमूल्य व ऐतिहासिक धरोवर है | कुम्भा का इतिहास केवल साम्राज्य व युद्धों पर विजय तक ही सिमित नहीं बल्कि उनकी शक्ति और सगठन की क्षमता के साथ-साथ उनकी रचनात्मकता भी आचर्यजनक थी | "संगीत राज " उनकी एक महान और प्रसिद्ध रचना है जिसे साहित्य का कीर्ति स्तम्भ मान जाता है
महाराणा कुम्भा कि उपाधिया :- अभिनवभृताचार्य, राणेराय, रावराय, हालगुरु, शेलगुरु, दानगुरु, छापगुरु, नरपति, परपति, गजपति, अश्वपति, हिन्दू सुलतान, नान्दीकेशवर |
परिचय
महाराणा कुम्भा (कुम्भकर्ण) महाराणा मोकल सिंह के पुत्र थे और उनकी हत्या के बाद सिहासन पर बैठे |
चित्र -महाराणा मोकल सिंह
उन्होंने अपने पिता के मामा रणमल राठौड़ की सहायता से शीघ्र ही अपने पिता के हत्यारो से बदला लिया | इनके तीन संताने थी जिसमे दो पुत्र उदा सिंह, राणा रायमल तथा एक पुत्री रमाबाई थी | 1437 ई. में मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी को भी उन्होंने उसी साल सांरगपुर के पास बुरी तरह से हराया और इस विजय के उपलक्ष्य में चित्तौड़ का विख्यात विजय सतम्भ बनवाया |
विजय सतम्भ
राठौड़ कहीं मेवाड़ को हस्तगत करने का प्रयत्न न करें, इस प्रबल संदेह से शंकित होकर उन्होंने रणमल को मरवा दिया और कुछ समय के लिए मंडोर का राज्य भी उनके हाथ में आ गया | राज्यारूढ होने के सात वर्षों के भीतर ही उन्होंने सारंगपुर, नागौर, नराणा, अजमेर, मंडोर, मोडालगढ़, बूंदी, खाटू, चाटूस आदि के सुदृढ़ किलों को जीत लिया और दिल्ली के सुल्तान सेयद मुहम्मद शाह और गुजरात के सुल्तान अहमदशाह को परास्त किया | उनके शत्रुओ ने अपनी पराजय का बदला लेने का बार बार प्रयत्न किया, किंतु उन्हें सफलता कभी नहीं मिली | मालवा के सुल्तान ने 5 बार मेवाड़ पर आक्रमण किया | नागौर के स्वामी शम्स खां ने गुजरात की सहायता से स्वतंत्र होने का विफल प्रयत्न किया | यही दशा आबू के देवडा की भी हुई | मालवा और गुजरात के सुल्तान ने मिलकर महाराणा पर आक्रमण किया | किंतु मुसलमानी सेनाए फिर परास्त हुई | महाराणा ने अन्य अनेक विजय भी प्राप्त की उन्होंने (डीडवाना)नागौर की नमक की खान से कर लिया और खंडेला, आमेर, रणथंभोर, डूंगरपुर, सीहारे आदि स्थानों को जीता | इस प्रकार राजस्थान का अधिकांश और गुजरात, मालवा और दिल्ली के कुछ भाग जीतकर महाराज बना दिया |
किंतु महाराणा कुम्भकर्ण की मह्त्ता विजय से अधिक उनके सांस्कृतिक कार्यों के कारण है | उन्होंने अनेक दुर्ग, मंदिर और तालाब बनवाएं तथा चित्तौड़ को अनेक प्रकार से सुसंस्कृत किया | कुंभलगढ़ का प्रसिद्ध किला उनकी कृति है | बसंतपुर को उन्होंने पुनः बसाया और श्री एकलिंग नाथ के मंदिर का जीणोद्धार किया | चित्तौड़ का कीर्तिस्तम्भ तो संसार की अदितीय कृतियों में एक है | इसके एक-एक पत्थर पर उनके शिल्पानुराग , वैदुष्य और व्यक्तित्व की छाप है | अपनी पुत्री रमाबाई (वागीश्वरी) के विवाह स्थल के लिए चित्तौड़ दुर्ग में श्रंगार चवरी का निर्माण कराया तथा चित्तौड़ दुर्ग में ही विष्णु को समर्पित कुम्भश्याम जी मंदिर का निर्माण कराया |
मेवाड़ के राजा राणा कुंभा का स्थापत्य युग स्वर्णकाल के नाम से जाना जाता है क्योंकि कुम्भा ने अपने शासनकाल में अनेक दुर्गा, मंदिर एवं विशाल राजप्रसाद का निर्माण कराया | कुम्भा ने अपनी विजयो के लिए भी अनेक ऐतिहासिक ईमारतों का निर्माण कराया, वीर विनोद के लेखक श्यामलदस के अनुसार कुंभा के कुल 32 दुर्गों का निर्माण कराया था जिसमें कुंभलगढ़, अचलगढ़, मचानदुर्ग, भोसाटदुर्ग, बसंतगढ़ आदि मुख्य माने जाते हैं तथा कुम्भ के काल में धरणशाह नामक व्यापारी मैं देपाक नामक शिल्पी के निर्देशन में रणकपुर के जैन मंदिरों का निर्माण करवाया था | राणा कुंभा बड़े विद्या निरोगी थे संगीत के अनेक ग्रंथों की उन्होंने रचना की और चंडी शतक एवं गीत गोविंद आदि ग्रंथों की व्याख्या की वे नाट्यशात्र के ज्ञाता और वीणा वादन में भी कुशल थे | कीर्ति स्तंभ की रचना पर उन्होंने स्वयं एक ग्रंथ लिखा और मंडल आदि सुधारो से शिल्पशास्त्र के ग्रंथ लिखाएं इन महाराणा इन महान राणा की मृत्यु अपने ही पुत्र उदय सिंह के हाथों हुई |
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